Monday, March 31, 2008

Shayari - 21

लेहराके ज़ुल्फ्को न चलो राहमेः
के लोग राह्ही क्या अपने घर भी भूल जायेगे
तुम थो चलिजावोगी अपनी ज़ुल्फ्को लहराकर
पेर उसशामा क कयाहोगा जोथुने जलायिहै राहमे!

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